Ek koshis.............

My photo
Faizabad, U.P, India
Hi,Myself Akhilesh Dwivedi a pharma professional; working in Dr.Reddy's Labs.

Thursday, 12 May 2011

काश मैं पत्थर होता......

काश मैं पत्थर होता.....
व्यर्थ की व्यथाओं
अनंत अनुकंपाओं
इंद्रधनुषी ज़ीवन विधाओं
से मुक्त होता....
काश मैं पत्थर होता......

उष्ण हवाओं
लहू को जमा देने वाली शीतलता
हर पल अनहोनी के
भय से मुक्त होता..
काश मैं पत्थर होता.....
टूटने का फिर ज़ुड़ने का
सिलसिला अबतक चलता रहा
हर ठोकर से पहले
संभलने की तमाम कोशिश करता रहा..
निरंतर सघनता फिर विरलता का ..
तो कहीं अंत होता...
काश मैं पत्थर होता......

किसी ना किसी रूप मे
आदि से अंत  तक
चरण से माथे तक
तृप्त भाव से साना होता
टूटने के बाद भी
प्रकृति से जुड़ा होता..
काश मैं पत्थर होता......

दोहे :

दोहे :
1..काली मोरी काया है नाही कौनव आकर्षण ...
  फिरहु मन को परखन खातिर फिरत हैं साथ मे दर्पण...

2..तू सोचे मैं बन जाऊं..
  मैं सोचु तोय..
  हम दोनो ही मूरख हैं ...
  सोचे से का होये....
3..तू एक गरम सलाख सा ....
  मैं एक सीतल लोहॅ....
  तुझको चाहे जो मोडऐ..
  मोहे मोड़ सके ना कोय

सुकून है तो बस इतना..

ग़म नहीं उसने मेरी परेशानियों का जस्न मनाया...
सुकून है तो बस इतना..
मेरी शंघर्ष की कहानी को उसने सबको सुनाया...
उम्र बीती है उसकी खुद को खुदा कहते - कहते...
आज उसीने शर्म से मेरी कब्र पर सर को झुकाया....

Tuesday, 26 April 2011

Andhre...

Ab tak andhre me jee rahe the hum...
Khuda ka sukra hai aaj se roshni to hogi....

Hashi..

Meri hashi ko dil ki khusi na samajh..
Abhi bhi sanson se zakhmo ko hawa lagti hai....

Sajda.....

Muddat hui thi  humko sajda kiye hue..
Sajde ko sir jhuka to sar hi kat gaya....

Monday, 4 April 2011

Lohe ka pratisod……

Samay ke gart, mitti ke dher me
Pada tha wah
Bilkul shant,
Apne ko chupaye hue
Humne use khod nikala…
Aur lag gaye use apne anusaar dhalne me…..

Pasaano ne pees diya
Jal laheron ne bhigo diya
Prachand agni  ne to
Uska rang hi badal dala
Maano subha ka surya….

Kuch samay baad jab
Wah punah apne rang me aaya
To apne ko apno ki maar
Se bacha na saka
Sayad hum manav hi
Unke bich sangrash ke karta the
Jo karm mahej swarth ke liye
Kiye ja rahe the….

Chikh nikalti rahi
Hum sunte rahe
Phir bhi wahi bar bar karte rahe
Antatah tej dhar ban hi gayi
Jo aaj tak samay ko kaat rahi hai…..

Usi dhar ne jab
Tanik manav ko chua bar
Sahsa nikal padi ek aah
Phut padi lahu ki daar
Sayad yahi seema thi
Uske sahansilta ki
Ye dard tha uska
Jo manav ke dard ke roop me tha….

Akhirkaar usi laoh ne
Manav ko das liya
Jisne use naya swaroop diya…..